मैं क्या लिखता हूँ
मुझे लिखने का शौक हैं, पर मुझे पता नहीं मैं क्या लिखता हूँ। जब मैं बैठता हूँ एकांत बंद कमरे में, तो मैं अपने हाले ए दिल लिखता हूँ। जब मैं होता हूँ गुसे में तो लोगों की औकात लिखता हूँ, जब होता हूँ दुःखी तो मैं अपने हालात लिखता हूँ। मुझे लिखने का शौक है, पर मुझे पता नहीं मैं क्या लिखता हूँ। कभी अपने दर्द लिखता हूँ, तो कभी दर्द छुपा कर लिखता हूँ, जब मैं होता हूँ सहज, तो मैं प्यार मोहब्बत लिखता हूँ जब मिले धोख़ा तो उसी मोहब्बत को वेबफा भी लिखता हूँ। मुझे लिखने का शौक हैं, पर मुझे पता नही मैं क्या लिखता हूँ।। कभी मैं खुद को हारा हुआ बदनसीब इंसान लिखता हूँ, तो कभी मैं खुद को दुनिया का ताकतवर इंसान लिखता हूँ। मुझे लिखने का शौक हैं, पर मुझे पता नहीं मैं क्या लिखता हूँ।। कभी सच्चाई लिखता हु, तो कभी अच्छाई लिखता हूँ, तो कभी मैं इस दुनिया की बुराई भी लिखता हूँ। मुझे लिखने का शौक हैं, पर मुझे पता नही मैं क्या लिखता हूँ।। कभी इश्क़ तो कभी धोख़ा लिखता हूँ, मैं आज के मतलबी रिश्तों की सच्चाई लिखता हूँ। कहीं लोग मेरी जिंदगी में आते हैं और चले जाते हैं मैं उन लो...