आरजू
आरजू
क्या कहें क्या ना कहें, बस कश्मकश मे रह गये
हम अल्फाज़ ढूँढते रहे, वो बात अपनी कह गये। ।
लोगो ने क्या कुछ कहाँ हमने सब गबारा कर लिया
हम इश्क़ की खातिर जमाने के सितम सह गये। ।
अब ना रही कोई तमना ना रहीकुछ आरजू
सैलाब कुछ ऐसा चला, अरमान सारे बह गये। ।
गुलशन मे तो सब गवाह है हर शजर तूफान का
शाखो पर बस सहमें हुए से चंद पते रह गये।।
बड़ी उमीद से हमने गाढ़े थे महल सपनो के सहर
फ़िर इमारते खंडहर बनी, खंडहर भी आखिर ढह गये।।
सुनील कुमार संधूरिया।।।
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Heart ❤touching 🙏🙏🙏💞💞❤❤
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