शायरी
वक़्त नें करवट क्या ली अपने तक बदल गए,
गैरों का जुबान पर जिकर तक ना था,
गैर फिर भी भटक गए ll
ऐ- दर्दे दिल ऐ दर्दे गम बता इलजाम दूँ तो
किसको दूँ,,
जिन्हे सब पता था वो तक मुकर गए ll
बड़ा हैरान हूँ यह बदलते चेहरे देख कर,
चेहरों पर नकाब, नकाबो पर दिखावा देख कर l
और उन्हें अब तक लगता हैं कि गलती हमारी थी,
जो हम बदल गए उन्हें किसी और कि बाहों में देख कर ll
कि सकून के मामले में, मैं मंदिर मस्जिद को
शमशान लिखता हूँ,,,,
बात धर्म और आस्था की हो, तो उसे मैं दुकान लिखता हूँ ll
वो मेरे लिए कुछ नहीं हैं जो, मंदिर मस्जिद में बैठे हैं,,
असल में जो घर पर बैठे हैं उन्हें मैं भगवान लिखता हूँ ll
कौन क्या कहता हैं मेरे बारे में,,,
मैं किसी की खबर नहीं रखता ll
सुनील जाना जाता हैं दोस्ती से,,,
मैं दुश्मनों पर नज़र नहीं रखता,,,
और तुम जानते हो मेरी कमजोरी, यह जान कर खुश हो,,,
अरे सुनो मैं सिबाये रब के किसी से नहीं डरता lll
किस्मत बुरी या मैं बुरा.......
इसका आज तक फैसला ना हों सका l
मैं तो सब का होता गया, पर......
आज तक कोई मेरा ना हों सका ll
उनके बिना जिंदगी इस....
तरह बिता रहे हैं.......l
उनको लिख रहे हैं........
और खुद को मिटा रहे हैं.... ll
मुझे इश्क था किसी से, मुझे कुछ कुछ याद हैं...
उजड़ा उजड़ा सा ही मेरे दिल में कोई आबाद हैं.. ll
मैंने किसी को चाहा था मेरे गम बताते हैं......
और मुझपे तरस खाते हैं मुझे कम बताते है.. ll
इश्क का जिसको ख्वाब आ जाता हैं....
समझो उसका वक़्त ख़राब आ जाता हैं.. ll
महबूब आये या ना आये.......
पर तारे गिनने का हिसाब आ ही जाता हैं.. ll
By-suneel kumar sandhuria
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