ऐ मेरे महबूब
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ऐ महबूब मेरे! सुन एक संदेश मेरा,
कि तू कैसी मोहब्बत मुझसे करना..!
बड़े ख्वाब है मेरे हमसफर को लेकर,
उसी की कुछ बातें मैं लिखता हूं..!
कि तुम मेरे हमसफर मुझसे मोहब्बत ऐसे करना..?
तुम पहली मोहब्बत अपने वतन से करना,
जिस मिट्टी में तुम जन्मे हो..!
दूसरी मोहब्बत अपने धर्म कर्म से करना,
जिसके लिए तुम इस दुनिया में आए हो..!
तीसरी मोहब्बत तुम अपने जन्मदाता से करना,
जिसकी वजह से तुम इस दुनिया में आए हो..!
चौथी मोहब्बत अपने वफादार यारों से करना,
जिसके साथ बैठकर तुम अपने दर्द में मुस्काए हो..!
पांचवी मोहब्बत तुम अपने खून के रिश्तों से करना,
जिसने जन्म से लेकर साथ निभाया है..!
छठवीं मोहब्बत तुम अपनी पहली दिलरुबा से करना,
जिसने मोहब्बत करना तुम्हें सिखाया है..!
सातवीं मोहब्बत तुम मेरे लिए खुद से करना,
जो तुम मेरे हिस्से में आए हो..!
आठवीं मोहब्बत तुम मुझ नादान से भी करना,
जिसकी मुस्कान बन कर लफ्ज़ों में समाए हो..!
मगर हां जो कभी दो रास्तों में उलझ जाओ तुम,
मुझे या किसी और को चुनने में..?
तो तुम उस दूसरे रास्ते पर ही जाना,
मेरे पास आने के लिए किसी से दगा मत करना..!
किसी का दिल मत दुखाना..!
जो ये मिट्टी कभी मांगे बलिदान तुझसे अपने अंश का..!
तो कसम है तुझे एक पल को भी 'सुनील' को मत याद करना..!
मुस्कुराकर अपनी मिट्टी को गले से लगा लेना..!
सुनील कुमार संधूरिया
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