आज की बेटियां
क्या हुआ है आज की बेटियों को,
जो हुआ करती थी शर्म - ओ- हया की मिसाल
आज नये रंगों
में बदलने लगे है इनके हालात।
जो थी घर की इज्जत, एक गहना संस्कार का,
अब वो चली है
भटकने, रास्ते बेकार का।
फैशन के नाम पर शराफत छोड़ दी,
सोशल मीडिया के रंगों में
शर्म मोड दी।
क्या हो गया है आज की नारी को,
अपने संस्कारों को भुला कर, अपनी राह
भटका ली।।
माँ बाप की सिख लगे जैसे कोई पुरानी बात,
सोशल मीडिया की दुनिया में खो
बैठी अपनी जात।
कल तक जो थी मासूम, वो चालक बन गयी,
प्यार के नाम पर एक साजिश रच
गई।
कभी झूठे इल्ज़ाम, कभी केसों की मार,
मर्द की इज़्ज़त लुटे, करे अदालत से वार।।
तलाक का खेल, फिर गुज़ारे का दावा,
रिश्ते को बना दिया, बस एक सौदा काला।
कहीं जला
दिए गए, कहीं मार दिए गए,
कुछ फँसते गए, कुछ बेकसूर मरते गए।
कल तक जो एक बेटी थी
घर की लक्ष्मी
वो आज उस घर की विनाशनि बन गयी है,
खो रही है एक माँ से उसका बेटा,
क्यों एक नारी ईतनी कुरुर बनती जा रही है।।
क्या हो गया है आज की बेटियों को,
चंद
पैसों और मौज मस्ती के लिए,
क्यों बेच रही अपने संस्कारों को।
कुछ लड़कियां छोटे
वस्त्र पहन कर नाच रही है
सोशल मीडिया पे
लोकप्रिय होने के लिए छोटे वस्त्रों से
अंग दिखाती हैं
ऐसी नारी होती है जो मर्यादा ना रखती हैं
कर्तव्यों को जो भूल बैठी
है, कुमार्ग पर जाती है । ।
कम उमर की लड़कियाँ बचपन में इश्क़ लड़ती हैं
जो गहना
होती नारियों का वो लाज शर्म भी भूल गई है,
अपनी संस्कृती से भी होती दूर गई।
क्या
हो गया आज की नारी को,
रिश्तों की पहचान भूल गई
सच्चे रिश्तों को ठुकराती है,
और
नशे से धुत लड़कों को अपनाती हैं ,
फिर उन्हीं से अपने रिश्ते को मरवा देती हैं।
शर्म-ओ-हया थी जो पहले, अब मज़ाक बन गई,
छोटी उम्र में बिगड़ कर, खुद की दुश्मन बन
गई।
कपड़ों की चमक से, चरित्र नहीं निखरता,
असली सौंदर्य वही, जो संस्कारों से
संवरता।
सोच बदलने की अब भी देर नहीं हुई,
इज़्ज़त, मर्यादा से ही राहें सही हुईं।
संस्कारों का दीप फिर से जलाना होगा,
भटकी हुई बेटियों को राह दिखाना होगा।।
धन्य
हैं उन बेटियों को जो अपनी मर्यादा को ना भूली है,
अपने संस्कारों को अपना गहना समझ
कर बैठी है।।
सुनील कुमार संधूरिया
Comments
Wow Great work 😮❤💯