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Showing posts from January, 2021

भूल गए

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<meta name="rankz-verification" content="mVeGaViXUO7oD76g"> बेहाल इतने रहे थे हम कि,  आज अपने हाल भूल गए हम!        यह ऊँची उड़ान भरने वाले परिंदे,        लगता हैं गुलेल की मार भूल गए.....       और कुछ वक़्त तक खामोश क्या बैठा रहा सुनील      लगता हैं तुम दुनिया वाले मेरी तलबार की धार        भूल गए!!  मुझे बस बिश्वास घात के तीरों नें भेदा था,  और मुझे अपनाने के लिए उन्होंने अपने दोस्त को मेरे पास भेजा था!!!                  जमीं धूल मेरे नाम से हट जाएगी,             जब मेरे वक़्त की आंधी चल जाएगी!             और यह जो आज नफ़रत नफ़रत करते हैं ना,             ये भी सुनील के रंग में रंग जायेंगे,,,,,             एक वक़्त के बाद यह भी भीड़ का हिस्सा बन            जायें...

ऐ मेरे महबूब

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 ऐ महबूब मेरे! सुन एक संदेश मेरा, कि तू कैसी मोहब्बत मुझसे करना..! बड़े ख्वाब है मेरे हमसफर को लेकर, उसी की कुछ बातें मैं लिखता हूं..! कि तुम मेरे हमसफर मुझसे मोहब्बत ऐसे करना..? तुम पहली मोहब्बत अपने वतन से करना, जिस मिट्टी में तुम जन्मे हो..!  दूसरी मोहब्बत अपने धर्म कर्म से करना, जिसके लिए तुम इस दुनिया में आए हो..!  तीसरी मोहब्बत तुम अपने जन्मदाता से करना, जिसकी वजह से तुम इस दुनिया में आए हो..!  चौथी मोहब्बत अपने वफादार यारों से करना, जिसके साथ बैठकर तुम अपने दर्द में मुस्काए हो..!  पांचवी मोहब्बत तुम अपने खून के रिश्तों से करना, जिसने जन्म से लेकर साथ निभाया है..!  छठवीं मोहब्बत तुम अपनी पहली दिलरुबा से करना, जिसने मोहब्बत करना तुम्हें सिखाया है..!  सातवीं मोहब्बत तुम मेरे लिए खुद से करना, जो तुम मेरे हिस्से में आए हो..!  आठवीं मोहब्बत तुम मुझ नादान से भी करना, जिसकी मुस्कान बन कर लफ्ज़ों में समाए हो..!  मगर हां जो कभी दो रास्तों में उलझ जाओ तुम, मुझे या किसी और को चुनने में..? तो तुम उस दूसरे रास्ते पर ही जाना, मेरे पास आने के लिए किसी...

अधूरे हम

अब  औरों  से  क्या  बात  करे  हम, खुद  में  ही  उलझे  हुए  हैं  हम l      कुछ इस तरह उस फकीर नें जिंदगी की मिसाल दी,    मुठी  में  धूल  ली  और  हवा  में  उछाल  दी ll सोचा नहीं था कि वह शख्स इतनी जल्दी छोड़ कर चला जाएगा, जो मेरे उदास होने पर मुझसे कहता था मैं हूँ ना ll        अब इस तरह हारेंगे कि तुम जीतकर पछताओगे,     बहुत खास हो तुम जिक्र बार बार जतायेंगे नहीं ll अगर समझ पाते तुम मेरी मोहब्बत को, तो हम तुमसे नहीं, तुम हमसे मोहब्बत करते ll        कल भी थे आज भी हैं, और कल भी ,     रहेंगे  तुम्हारे  बिना  अधूरे   हमlll                              सुनील कुमार संधूरिया

शायरी

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 वक़्त नें करवट क्या ली अपने तक बदल गए,  गैरों का जुबान पर जिकर तक ना था,  गैर फिर भी भटक गए ll ऐ- दर्दे दिल ऐ दर्दे गम बता इलजाम दूँ तो किसको दूँ,,  जिन्हे सब पता था वो तक मुकर गए ll बड़ा हैरान हूँ यह बदलते चेहरे देख कर,  चेहरों पर नकाब, नकाबो पर दिखावा देख कर l और उन्हें अब तक लगता हैं कि गलती हमारी थी,  जो हम बदल गए उन्हें किसी और कि बाहों में देख कर ll कि सकून के मामले में, मैं मंदिर मस्जिद को शमशान लिखता हूँ,,,,  बात धर्म और आस्था की हो, तो उसे मैं दुकान लिखता हूँ ll वो मेरे लिए कुछ नहीं हैं जो, मंदिर मस्जिद में बैठे हैं,,  असल में जो घर पर बैठे हैं उन्हें मैं भगवान लिखता हूँ ll कौन क्या कहता हैं मेरे बारे में,,,  मैं किसी की खबर नहीं रखता ll सुनील जाना जाता हैं दोस्ती से,,,  मैं दुश्मनों पर नज़र नहीं रखता,,,  और तुम जानते हो मेरी कमजोरी, यह जान कर खुश हो,,,  अरे सुनो मैं सिबाये रब के किसी से नहीं डरता lll किस्मत बुरी या मैं बुरा.......  इसका आज तक फैसला ना हों सका l मैं तो सब का होता गया, पर......  आज तक कोई मेर...

___________एहसास______

  मैं कविता नही एहसास लिख रहा हूँ, आज तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ l         जब मैं तुमसे मिला, तुम अलग सी लगी,         हम रोज मिलने लगे, फिर दूर हो गए l         आज तुमसे मिलने की आस लिख रहा हूँ,         सच मे तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ ll अजनबी से तुम पहचान बन गयी, पहचान बढ़ते बढ़ते तुम जान बन गयी l मेरी जान तुमको जीने की प्यास लिख रहा हूँ, तुम्हारे  लिए कुछ खास लिख रहा हूँ ll                तेरे आने जाने से मैं यूँ शायर बना,        शब्द कागज पे कैसे बैठते पता ही नहीं चला l        अपने सीने मे दबी साँस लिख रहा हूँ,        सच में आज मैं तुम्हारे लिए खास लिख रहा हूँ ll                ...

आरजू

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                          आरजू         क्या कहें क्या ना कहें, बस कश्मकश मे रह गये हम अल्फाज़ ढूँढते रहे, वो बात अपनी कह गये। । लोगो ने क्या कुछ कहाँ हमने सब गबारा कर लिया हम इश्क़ की खातिर जमाने के सितम सह गये। । अब ना रही कोई तमना ना रहीकुछ आरजू सैलाब कुछ ऐसा चला, अरमान सारे बह गये। । गुलशन मे तो सब गवाह है हर शजर तूफान का शाखो पर बस सहमें हुए से चंद पते रह गये।। बड़ी उमीद से हमने गाढ़े थे महल सपनो के सहर फ़िर इमारते खंडहर बनी, खंडहर भी आखिर ढह गये।।                             सुनील कुमार संधूरिया।।।